मिट्टी
मिट्टी मिट्टी में सना, बना, मिट्टी में ही मिल जायगा || तू क्यों बुन रहा दूसरों के लिए जाल , कल खुद ही बाहर निकल न पाएगा || मिट्टी में सना, बना, मिट्टी में ही मिल जायगा || तुम उसके हिस्से का बगीचा क्यों लेता है, जो तुम्हारा है वो है || मिट्टी में सना, बना, मिट्टी में ही मिल जायगा || रिस्ता तुम बनाये हो या रिस्ता तुम्हें बनाया है, रिस्ता को तुम जानते भी हो क्या नहीं || मिट्टी में सना, बना, मिट्टी में ही मिल जायगा || पत्थर से तुम उसका जान लेते हो, पत्थर को ही तुम भगवन समझते हो || मिट्टी में सना, बना, मिट्टी में ही मिल जायगा || डॉ मोहन कुमार